मिटा सको तो मिटा दो सारे शिकवे गिले!
वक्त बह रहा है फिर हम तो मिले न मिले!
किसे पता अबके बरस बसंत आये तो भी
आपके जानेके बाद, फूल खिले न खिले!
है बस ईतनीसी बात, आपसे नजरें मिली
और फसानो के शुरु हो गये ये सिलसिले!
रात महक उठी है, शायद आप आयें होंगे!
नहीं तो ना होती ये सितारों की झिलमिले!
“शबाब” रोशनी से तो न था रिश्ता जीते जी
मोत पे देख लो कितने आँसु के हैं दीप जले।
– जयश्री विनु मरचंट, “शबाब”
वो ही करेंगे फरेब हमसे, वो भी ईतना बडा?
होकर अपना देंगे धोका, वो भी कितना बडा?
सांसोकी सरगम छेडे तराना जिनके नामका,
वो ही कैसे बन गये जिंदगीमें फितना बडा?
हार चुके दिल-ओ-दिमाग उन पर और वो ही,
पूछे हैं हमें, प्यारमें है हारना या जीतना बडा?
ईस जहांमें ढूंढने चले दोस्त, था पता फिर भी,
खुदासे बढकर यहां होगा कोई भी मीत ना बडा!
संगदिल हैं अपने, संगेमरमर का ये बूतखाना,
फिर क्युं फूटफूट कर रोना और चिखना बडा?
– जयश्री विनु मरचंट, “शबाब”
न जाने वो, क्युं नहीं मिलते, अबके बरस!
चमनमें भी फूल नहीं खिलते, अबके बरस!
जखम लगते, और वक्त उसे भर देता था!
क्या कहें, घाव भी नहीं भरते, अबके बरस!
सुना था, माली आकर संवारेंगे सारा चमन ,
पर रकीब आ गये भेष बदलके, अबके बरस!
बिजली गिरे और चमन जले तो भी समजे!
बहारमें ख़ाक हुआ चमन जलके अबके बरस!
मिलनके लम्होंसे फिर महेकेगी सारी फ़िज़ा
“शबाब” उम्मीदसे है जिंदा रहतें अबके बरस!
– जयश्री विनु मरचंट “शबाब”
युं तो कोई भी वजह ही न थी आप के ना आने को!
दिल रखने को ही सही, कह देते किसी बहानेको!
आप से क्या गिले शिकवे, आप तो अपने नहीं!
मेरे रंजोगम से क्या लेना-देना कोई बेगानेको?
सैलाबे-अश्क बहा गये, मेरे घर की हर वो हंसी!
बरसों से जो चुभती थी ना जाने कितनी जमानेको!
आधीअधूरी दास्तां की तरह, छोडो नहीं ये रिश्ता!
चाहो तो मिटा दो या कर दो पूरा ईस फसानेको!
नापातोला युं प्यार या रिश्ता, हमें तो गंवारा नहीं!
हम हैं वो हैं, ढूंढ लो किसी ओरको आजमानेको!
– जयश्री विनु मरचंट, “शबाब
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