“रहेता है..! “
साथ यहां किस का यूँ तो जीवनभर रहेता है?
एक आवारा आशिक सबके अंदर रहेता है!
फेहरिस्त में तेरी, मैं हुं कोई मुझे शक नहि
नाम मेरा क्या उसमें सबसे उपर रहेता है?
उसको बस इक बार तेरे दर पर देखा तो था,
वो दीवाना तब से सुना है घर पर रहेता है!
अपना वजूद कबसे हम तो भूला चूके हैं,
कौन ये फिर भी ज़हनों-दिल में अक्सर रहेता है?
महेफिल की वो रौनक शबके रहमो करम पे नहि
अब तो पीना और पिलाना दिनभर रहेता है!
-जयश्री विनु मरचंट “शबाब”
(फेहरिस्तः યાદી, લીસ્ટ)
“किस का साथ कभी यहां उम्रभर रहेता है?
एक आवाराआशिक सबके अंदर रहेता है!”
क्या बात है! बहूत अच्छे.
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मा जयश्री विनु मरचंट, “शबाब”जी आपकी काव्य पठ क्रर सांखे नम हुइ
किस का साथ कभी यहां उम्रभर रहेता है?
एक आवाराआशिक सबके अंदर रहेता है!
क्या बात है !
ये ख़िज़ाँ की ज़र्द-सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आँसुओं से हरा करो
अपने वजूद को कबसे भूला चूके हैं हम,
फिर ये कौन हमसे युं मयस्सर रहेता है?
बहुत अच्छे
जरा तुमसे कह दें कि तुम्हें बहुत याद करते हैं हम.
सुबूत है ये मोहब्बत की सादामिज़ाजी का ~
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फेहरिस्त में तेरी, मैं हुं कोई मुझे शक नहि
नाम मेरा क्या उसमें सबसे उपर रहेता है? क्या शेर कहा है सुभानअल्लाह!
मेरे दिलमे तू है जैसे सिपमे मोती है
यह बता तेरे दिलमे मैं हूँ की नहीं?
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